Delhi Service Bill: लोकसभा में मंगलवार को पेश किया गया दिल्ली सर्विस बिल बृहस्पतिवार को ध्वनिमत से पारित हो गया. अब सरकार की पूरी कोशिश रहेगी कि इस विधेयक को राज्यसभा में भी पारित करा लिया जाए. वहीं, विपक्ष अंकगणित में खेल कर इसे रोकने के लिए पूरा जोर लगाएगा. हालांकि, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने इस बिल पर राज्यसभा में भी सरकार का समर्थन करने का ऐलान कर दिया. वहीं, बीजू जनता दल और तेलुगु देशम पार्टी के बिल को उच्च सदन में भी समर्थन देने की पूरी उम्मीद है. दरअसल, इस बिल को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली की सीएम अरविंद केजरीवाल सरकार आमने-सामने हैं. सीएम केजरीवाल विपक्षी एकता के जरिये इसे राज्यसभा में रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
अगर इस विधेयक पर संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मुहर लग गई तो ये कानून बन जाएगा. फिर दिल्ली सरकार के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से लेकर कई अधिकार उपराज्यपाल को मिल जाएंगे. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 11 मई 2023 को अधिकारियों पर नियंत्रण का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया था. कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर काम करेंगे. फिर केंद्र सरकार ने 19 मई को अध्यादेश लाकर कोर्ट का फैसला बदलकर ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार राज्यपाल को दे दिया. अध्यादेश को छह माह में संसद से पारित कराना जरूरी है. इसीलिए लोकसभा में गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2023 पेश किया गया.
केंद्र ने धारा-3ए हटाकर अपने अधिकार किए इस्तेमाल
लोकसभा से पारित दिल्ली सेवा विधेयक में धारा-3ए को हटा दिया गया है. इस धारा के मुताबिक, किसी भी अदालत का कोई भी फैसला होने के बाद भी दिल्ली विधानसभा के पास सूची-2 की प्रविष्टि 41 के मामलों को छोड़कर अनुच्छेद-239 के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी. कोर्ट ने आदेश दिया था कि जमीन, सार्वजनिक सुरक्षा और पुलिस को छोड़कर सभी सेवाओं पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अधिकार रहेगा. अब इस बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि संशोधन से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सीधी अवहेलना ना हो. लिहाजा, केंद्र ने विधेयक में धारा-3ए को हटाकर संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया है, जो उसे राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने का अधिकार देता है.
राज्य सूची में भी कानून बना सकती है देश की संसद
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, दिल्ली के बारे में केंद्र सूची यानी सूची-1 और समवर्ती सूची यानी सूची-3 के मामलों में केंद्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है. केंद्र के अनुसार, अनुच्छेद-239 एए के तहत राज्य सूची यानी सूची-2 के मामलों में भी देश की संसद कानून बना सकती है. संविधान के अनुच्छेद-249 के तहत दिए गए अधिकारों के अनुसार राष्ट्रहित में राज्य सूची में भी संसद कानून बना सकती है. पिछले अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण को संसद और दिल्ली विधानसभा में सालाना रिपोर्ट पेश करना जरूरी था. विधेयक में इस अनिवार्यता को हटा दिया गया है. ऐसे में सालाना रिपोर्ट को संसद और दिल्ली विधानसभा में पेश करने की जरूरत खत्म हो जाएगी.
प्रस्तावित विधेयक में क्या है धारा-45डी
लोकसभा से पारित विधेयक में धारा-45डी दिल्ली में अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्ड, आयोगों और वैधानिक निकायों के अध्यक्षों व सदस्यों की नियुक्ति व स्थानांतरण से जुड़ा है. विधेयक में नए जोड़े गए प्रावधान के तहत अब नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी की सिफारिशों के मुताबिक दिल्ली सरकार के बोर्ड और आयोगों में नियुक्तियां व तबादले होंगे. इसमें मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे. प्राधिकरण की अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे. प्राधिकरण की ओर से तय किए जाने वाले सभी मामले समिति के सदस्यों के बहुमत से पास किए जाएंगे. अगर प्राधिकरण के सदस्यों के बीच किसी मामले में मतभेद होता है तो दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला ही अंतिम माना जाएगा.
अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली अध्यादेश 2023 पर 20 जुलाई को सवाल उठाया था. कोर्ट ने कहा था कि यह केंद्र को राज्य की नौकरशाही पर नियंत्रित हासिल करने का मौका देता है. विपक्ष ने संसद में कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले को कानून के जरिये बदलना अनुचित है. विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्र सरकार विधायिका की शक्ति का दुरुपयोग कर रही है. लोकसभा में संख्याबल सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में था. वहीं, संसद के उच्च सदन में बीजेपी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है, लेकिन सरकार में शामिल नहीं होने के बाद भी कुछ दलों ने राज्यसभा में भी सरकार का समर्थन करने की मंशा जाहिर कर दी है.
विधेयक के कानून बनने पर क्या बदलेगा
संशोधित विधेयक में नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में बदलाव किया गया है. इसके तहत उपराज्यपाल को दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार दिया गया है. केंद्र सरकार दिल्ली के मामले में तय करेगी कि अधिकारी का कार्यकाल कितना होगा. यही नहीं, उनका वेतन, ग्रेच्युटी, प्राविडेंट फंड भी केंद्र सरकार ही तय करेगी. अधिकारियों के अधिकार, ड्यूटी और पोस्टिंग भी केंद्र सरकार तय करेगी. किसी पद के लिए योग्यता, पेनाल्टी और निलंबन की शक्तियां भी केंद्र के पास ही होंगी.
कब हुई थी बिल लाने की शुरुआत?
विधेयक और उससे भी पहले अध्यादेश लाने की शुरुआत साल 2015 में हुई थी. तब केंद्रीय गृह मंत्री ने एक अधिसूचना के जरिये दिल्ली के अधिकारियों और कर्मचारियों की पोस्टिंग व ट्रांसफर के अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल को दे दिए थे. शुरुआत में इसे लाने का मकसद दिल्ली, अंडमान व निकोबार, लक्षद्वीप, दमन व दीव और दादरा व नागर हवेली कैडर के सिविल सेवा कर्मचारियों के ट्रांसफर व पोस्टिंग समेत अनुशासनात्मक कार्यवाही से जुड़े फैसले लेना था. इसके लिए एक निकाय की स्थापना की जानी थी. फिर केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर दिल्ली के राज्यपाल को अतिरिक्त अधिकार दे दिए. दिल्ली सरकार ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. मामला पांच जजों की संविधान पीठ के पास गया और फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में आया. अब इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए केंद्र सरकार ये विधेयक लाई है.